History of Indian classical music is described in this post of sangeetbook.com
Accurate sargamnotes of hindi songs from original scale are available on sangeetbook.
संगीत का संक्षिप्त इतिहास
- संगीत के इतिहास को आदि काल से आज तक के समय को मोटे तौर से हम तीन भागों में बाँट सकते है –
- प्राचीन काल–आदि काल से 800 ई० तक।
- मध्य काल– 801 ई० से 1900 ई० तक।
- आधुनिक काल–1901 ई० से आज तक।
प्राचीन काल
- इस काल का प्रारंभ आदि काल से माना जाता है। इस काल में चारों वेदों की रचना हुई। वेदों में सामवेद प्रारंभ से अन्त तक संगीतमय है। इस वेद के मन्त्रों का पाठ अभी भी संगीतमय होता है।
- महाभारत में सप्त स्वरों और गंधार ग्राम का उल्लेख है।
- रामायण में विभिन्न प्रकार के वाद्यो तथा संगीत की उपमायों का उल्लेख मिलता है। रावण स्वयं संगीत का बहुत बडा विद्वान था। उसने रावणस्त्रण नामक वाद्य का आविष्कार भी किया।
- भरत कृत नाट्य शास्त्र–यह संगीत की महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसके रचना काल के विषय मे अनेक मत है,किन्तु अनेक विद्वानो द्वारा इसका समय 5 वी शताब्दी माना जाता है।यह नाट्य के संबंध में लिखी गई पुस्तक है। इसके 6 अध्यायों में संगीत संबंधी विषयों में प्रकाश डाला गया है।
- इसकी बताई हुई बाते आज भी लगभग 1500 वर्षों के बाद भी प्रचार में है और उन्हें शास्त्रीय संगीत का आधार माना जाता है।
- मतंग मुनि कृत बृहद्देशी– इस ग्रंथ के रचना – समय के विषय में अनेक मत है। कुछ विद्वान इसे तीसरी शताब्दी का,तो कुछ चौथी शताब्दी का, कुछ पाँचवीं शताब्दी का, कुछ छठ़वी शताब्दी का ग्रन्थ मानते है।
- संगीत के इतिहास में सर्वप्रथम इसी ग्रन्थ में ‘राग’ शब्द का प्रयोग किया गया है और आज राग का कितना महत्व है, किसी से छिपा नहीं है।
- नारद लिखित नारदीय शिक्षा– इस ग्रंथ के रचना काल के विषय में भी विद्वानों के अनेक मत है।अधिकांश विद्वान इसे दसवीं और बारहवीं शताब्दी के बीच का ग्रन्थ मानते है।
मध्य काल
- इस काल की अवधि 9 वी शताब्दी से 19 वी शताब्दी तक मानी जाती है। उस समय के ग्रन्थों को देखने से यह स्पष्ट है कि जिस प्रकार आजकल राग गायन प्रचलित है,उसी प्रकार उस काल में प्रबंध गायन प्रचलित था। इसलिये इस काल को प्रबंध काल भी कहते है। 9वी शताब्दी से 12वी शताब्दी तक भारतवर्ष में संगीत की अच्छी उनत्ति हुई।
- उस समय की रियासतों में संगीत को बडा प्रोत्साहन मिला। प्रत्येक रियासत में अच्छे अच्छे संगीतज्ञ रहते थे जिनको राज्य की तरफ से अच्छी तनख्वाह मिलती थी।
- मध्य काल में कुछ संगीत के महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी लिखे गये-
- संगीत मकरन्द– इस ग्रन्थ के रचयिता नारद है। इसमें रागों को स्त्री, पुरूष और नपुंसक वर्गों में विभाजित किया गया है।
- गीत गोविंद– इसकी रचना 12वी शताब्दी में जयदेव द्वारा हुई। जयदेव केवल कवि ही नहीं गायक भी थे। इस पुस्तक में गीतों और प्रबन्धो का संग्रह है,किन्तु स्वरलिपि न होने से उन्हें उसी प्रकार गाया नहीं जा सकता।
- संगीत रत्नाकर– इसकी रचना 13 वी शताब्दी में शारंगदेव द्वारा हुई। यह ग्रन्थ उत्तरी संगीत में नहीं वरन् दक्षिणी संगीत में भी महत्वपूर्ण समझा जाता है। इसमें संगीत संबंधी बहुत सी समस्याओं को सुलझाया गया है।
- अलाउद्दीन के शासन काल में अमीर खुसरो नामक संगीत का एक विद्वान था। कहा जाता हैं कि उसने तबला, सितार,कव्वाली,तराना तथा झूमरा,सूलताल, आड़ा चारताल आदि का आविष्कार किया।
- अकबर के शासनकाल में संगीत की बहुत उन्नति हुई। अकबर स्वयं बहुत बडा संगीत प्रेमी था। ‘आइने अकबरी’ के अनुसार अकबर के दरबार में छत्तीस संगीतज्ञ थे जिनमें तानसेन प्रमुख था।
- अकबर के समय में ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर,गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास,मीराबाई आदि भक्त कवियों और कवियत्रियों द्वारा जनता में संगीत का प्रचार बडा। दक्षिण के पुण्डरीक बिट्ठल ने चार ग्रन्थों की रचना की- रागमाला, राग मंजरी,सद्राग चन्द्रोदय और नर्तन – निर्णय।
- जहाँगीर के शासनकाल में भी कई संगीतज्ञ थे जैसे बिलास खाँ,छतर खाँ मक्खू आदि। 1610 में दक्षिण के विद्वान पं० सोमनाथ ने ‘राग विवोध’ नामक पुस्तक लिखी।
- शाहजहां के दरबारी संगीतज्ञों के नाम निम्नलिखित है-दिरंग खाँ और ताल खाँ, जिन्हें शाहजहां ने ‘गुण समुद्र’ की उपाधि दी और जगन्नाथ को ‘कविराज’ की उपाधि दी।
आधुनिक काल
- भारतवर्ष में फ्रांसीसी,डच,पूर्तगीज,अंग्रेज आदि आये। किन्तु अंग्रेजों ने धीरे धीरे सम्पूर्ण भारत पर अपना आधिपत्य जमा लिया। उनका मुख्य ध्येय भारत पर शासन करना था और धन कमाना था। अतः उनसें संगीत प्रचार की आशा करना व्यर्थ है उस.समय संगीत कुछ ही रियासतों में किसी प्रकार से चल रहा था।
- बंगाल के सर सौरेन्द्रमोहन 19 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में ‘यूनिवर्सल हिस्ट्री आँफ म्यूजिक’ नामक पुस्तक लिखी।
- 1900 शताब्दी के बाद अर्थात बीसवी शताब्दी के प्रारंभ से ही संगीत का प्रचार एवं प्रसार होने लगा। इसका मुख्य श्रेय पं० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर और भातखंडे जी को है।
- विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने संगीत का क्रियात्मक और भातखंडे जी ने शास्त्रीय पक्ष लिया। दोनों ने अपने अपने पक्ष को शक्तिशाली बनाया। इस प्रकार सच्चे रूप में संगीत का प्रसार हो सका।
- आकाशवाणी(रेडियो), चलचित्र (सिनेमा) द्वारा भी संगीत का काफी प्रचार हुआ।
- स्वतंत्रता के पश्चात संगीत के प्रचार में सरकार का बहुत बडा हाथ रहा है। आकाशवाणी के स्तर को बढाने के लिये उसमें भाग लेने वाले कलाकारों की ध्वनि परीक्षा हुई।
- आकाशवाणी प्रतिवर्ष एक संगीत प्रतियोगिता और वृहत संगीत सम्मेलन आयोजित करता है।
- सरकार ने संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की जो अब तक संगीत की सेवा कर रही है। उच्च संगीत शिक्षा के लिए योग्य विद्यार्थियों को प्रतिमाह छात्रवृति दी गयी। प्रति शनिवार को साढे़ नौ बजे रात्रि से ग्यारह बजे रात्रि तक भारत के प्रमुख संगीतज्ञों का प्रदर्शन होता है। प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस पर भारत के राष्ट्रपति चार संगीतज्ञों को अलग अलग एक हजार रुपये और एक कश्मीरी शाल देकर सम्मानित करते हैं।
- आकाशवाणी ने केवल शास्त्रीय संगीत को ही नहीं वरन् लोकगीत, भजन आदि को भी बहुत प्रोत्साहन दिया है विभिन्न केंद्रों में गीत भजन आदि के रेकॉर्ड तैयार कराये गये है।
- जनता की तरफ से कई स्थानों पर संगीत सम्मेलन आयोजित किए जा रहे है। उल्लेखनीय नाम है-प्रयाग, लखनऊ, कानपुर, बम्बई,स्कूल आँफ इन्डियन म्यूजिक बडौदा,म्यूजिक कालेज कलकत्ता, माधव संगीत विद्यालय ग्वालियर आदि।
- भारत के सम्पूर्ण हाई स्कूल, ईण्टरमीडिएट तथा समकक्ष परिक्षाओं में संगीत एक वैकल्पिक विषय हो गया है