हारमोनियम-
- आधुनिक पियानो और हारमोनियम इक्वली टेम्पर्ड स्केल के अनुसार ट्यून की जाती है। पियानो अधिक मुल्यवान होने के कारण सर्वसाधारण के लिए सुलभ नहीं रहा। इसलिये इसका अधिक प्रचार नहीं हो सका।
- अन्य सुविधाओं के साथ साथ साथ हारमोनियम का दाम अपेक्षाकृत कम होने के कारण कुछ वर्षों से इसका प्रचार इतना अधिक बढा है कि आजकल प्रत्येक घर में हारमोनियम की ध्वनि सुनाई पड जाती है।
- 15 वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्रथम बार हारमोनियम की रचना अलैक्जेंडर डिवैन द्वारा फ्रांस में हुई।
- हारमोनियम को स्वर- मंजूषा या स्वर पेटी भी कहते है। इसकी गणना सुषिर वाद्यो में होती हैं, क्योंकि जब इसमें धौकनी से हवा उत्पन्न करते है और परदे को दबाते है तो उसके नीचें की रीढ़ की पत्ती कम्पन करती है और स्वर उत्पन्न होता है।
हारमोनियम के गुण:-
- अन्य भारतीय वाद्यो की तुलना में इसे बजाना बडा आसान है क्योंकि इसकी बनावट बडी सरल है। संगीत के व्यापक अर्थ में साधारण जनता में संगीत के प्रचार में हारमोनियम बडी सहायक सिद्ध हुई।
- मूल्य साधारण तथा अन्य वाद्यों की तुलना में अधिक टिकाऊ और मजबूत होने के कारण यह सर्वसुलभ है।
- हारमोनियम के स्वर उतारे चढाये नहीं जाते। यह पहले से ही मिली हुई स्थिर होती है।
- इसे बजाना और इसमें कुशलता प्राप्त करना अधिक सरल है।
हारमोनियम के अवगुण:-
- हारमोनियम इक्वली टेम्पर्ड स्केल के अनुसार ट्यून की जाती हैं, इसलिये इसके प्रत्येक स्वर भारतीय सच्चे स्वर की दृष्टि से बेसुरे होते है। संगीतज्ञों के लिये हारमोनियम का यह दोष अक्षम्य हैं। इस दोष को दूर करने के लिए कुछ संगीतज्ञ स्वयं अपने निरिक्षण में हारमोनियम ट्यून करवाते हैं।
- हारमोनियम के सदैव खडे- खडे स्वर निकलते हैं। शास्त्रीय संगीत में केवल खडे स्वरों से काम नहीं चलता। गायक को आवश्यकतानुसार दोनों प्रकार की मींड, ऊपर से नीचें आना तथा नीचें से ऊपर जाना,प्रयोग करना पडता है। हारमोनियम में मींड न उत्पन्न करने की क्षमता भारतीय संगीत के लिए बडी कमी है।
- केवल मींड ही नहीं गमक भी इसमें किसी प्रकार से संभव नहीं है।
- इसके एक सप्तक में केवल 12 स्वर होते है – 7 शुद्ध और 5 विकृत। अतः श्रुति का काम इससे बहुत दूर है। कुछ राग ऐसे भी है जो सच्चे तौर से हारमोनियम में बजायें नहीं जा सकते। इन्हीं सभी कारणो से शास्त्रीय संगीतज्ञ शास्त्रीय संगीत के लिए हारमोनियम को अच्छा नहीं समझते।