Omkar Nath Thakur Biography in Hindi Jivini Jeevan Parichay 1897-1967

Omkar Nath Thakur Biography in Hindi
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Omkar Nath Thakur Jeevan Parichay in Hindi

जन्म विवरण –

स्थान – जहाज, बड़ौदा, भारत

जन्म तिथि – 24 जून 1897



Omkar Nath Thakur Jivini in Hindi

ओमकार नाथ ठाकुर की जीवनी हिंदी में

परिवार –

माता – झवरेवा

पिता – पं० गौरीशंकर ठाकुर

शिक्षक – पं० विष्णु दिगम्बर जी

साधू संगीतज्ञ पं० विष्णु दिग्म्बर पलुस्कर के योग्य शिष्यों में ओमकार नाथ ठाकुर का नाम बडे आदर से लिया जाता है। संगीत और संगीतज्ञों को ऊचा उठाने का जो व्रत पं० विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने ले रखा था, उसे अवश्य उनके शिष्य ओमकार नाथ ठाकुर ने पूरा करके दिखाया। कला और शास्त्र का सुन्दर समन्वय बिरले संगीतज्ञों मे ही मिलता है।

प्रारंभिक जीवन –

•ओमकार नाथ ठाकुर का जन्म 24जून 1897 को तत्कालीन बडौदा रियासत के जहाज ग्राम में हुआ था।

•इनके पिता का नाम पं० गौरीशंकर ठाकुर और माता का नाम झवरेवा था। पं० जी के बाल्यकाल में इनका परिवार पारिवारिक कलह और आर्थिक संकटों से पीड़ित था। यहाँ तक की माँ  को मजदूरी करनी पडी और बालक ओमकार ठाकुर को मिलकर काम करके या रामलीला में अभिनय करके परिवार की सहायता करनी पडी।

•पं० जी का कण्ठ प्रारंभ से ही मधुर था। पाठशाला और रामलीला में जब भी ये कविता गान करते थे तो शिक्षक और श्रोता दोनों प्रभावित होते थे।बचपन से ही इन्हें संगीत से प्रेम था। संगीत सीखने और सुनने के लिए ये सब प्रकार के कष्ट झेलने के लिए तैयार रहते थे। एक बार एक साधु संगीतज्ञ नर्मदा के पास पधारे। उनका गायन सुनने के लिए यें बहुत लालायित हुये। नर्मदा पार करने के लिए पैसे न होने कारण इन्होंने तेरकर नर्मदा को पार किया और गीले कपड़ों में ही गायन सुनने पहुंच गये।

• पिता की मृत्यु के बाद पं० जी को अपने भविष्य की चिंता हुई । इसी बीच सेठ शापुरजी- मंचेरजी- डुंगाजी- का गायन सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। सेठ ने पं० जी के बडे भाई पं० बालकृष्ण को यह सुझाव दिया की उन्हें पं० विष्णु दिगम्बर जी के पास संगीत सीखने के लिए बम्बई भेज दिया जाये। उस सज्जन ने मार्ग व्यय के लिए कुछ  पैसे भी दिये। उनका यह सुझाव घर के लोगों ने मान लिया और उन्हें 13 वर्ष की अवस्था में पं० विष्णु दिगम्बर जी के पास संगीत सीखने बम्बई भेज दिया। संगीतज्ञ बनने की महत्वाकांक्षा लिए वे बम्बई जा पहुंचे। उस विद्यालय में निशुल्क खाने पीने व रहने की अच्छी व्यवस्था थी, किन्तु नौ वर्षों तक संगीत सीखने की शर्त थी।  6-7 वर्षों तक संगीत सीखने के बाद पं० विष्णु दिगम्बर जी ने उन्हें  सन 1916 में गांधर्व महाविद्यालय का प्रिंसिपल बनाकर लाहौर भेज दिया। उन्होंने अपना उत्तरदायित्व बडी तत्परता से निभाया।

आजीविका –

• लगभग नौ वर्षों तक विद्यार्थी जीवन गुरू गृह में बिताने के बाद वे घर लौट आए। उस समय ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति असहयोग आंदोलन में भाग लिया। जून 1922 में सूरत की इन्दिरा देवी से उनकी शादी कर दी गई। अतः उनके ऊपर और अधिक जिम्मेदारी बढ गयीं। जलसो द्वारा प्राप्त धन कुटुम्ब के निर्वाह और शादी के कर्ज को चुकाने में अपर्याप्त था। अतः नेपाल महाराज से सम्मान और धन प्राप्ति की आशा लेकर नेपाल की ओर निकल पडे। रास्ते में बडी कठिनाइयों का सामना करना पडा। 6 दिनों तक पैदल यात्रा करने के बाद वे नेपाल महाराज के पास जा पहुंचे। नेपाल नरेश उनके गायन से बडे प्रभावित हुए और इनाम में पांच हजार रुपये दिये। उस समय पांच हजार रुपये बडी रकम थी। बाद में पं० जी ने नेपाल की 3 बार यात्रा की और प्रत्येक बार सम्मान प्राप्त किया।

•नेपाल के अतिरिक्त उन्होंने इटली,फ्रांस, जापान, बेलजियम, स्वीटजरलैंड आदि देशों की यात्रा की और जहाँ भी गये  भारतीय संगीत का मस्तक ऊचा किया। इटली के बैनीटो मुसोलनी इनके गायन से प्रभावित हुए।

•विदेश में पं० अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार सुनकर बहुत दुखी हुए और स्वदेश लौटकर बम्बई में रहने लगे। सन 1952 में भारत सरकार द्वारा अफगानिस्तान भेजे गये जहाँ पर उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक मंडल का नेतृत्व किया।

•कला के साथ साथ उन्होंने शास्त्र पक्ष पर भी बहुत ध्यान  सन 1938 में संगीतांजली प्रथम भाग प्रकाशित किया। जिसमें कला पक्ष पर प्रकाश डाला गया है। इसके सात भाग अब तक प्रकाशित हो चुके है।

पुरुस्कार –

सन 1930 में राजकीय संस्कृति महाविद्यालय कोलकाता द्वारा संगीत मार्तंड

सन 1933 में विशुद्ध संस्कृत महाविद्यालय, काशी द्वारा संगीत सम्राट

सन 1955 में गणतन्त्र के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा पदमश्री

की उपाधि से सम्मानित किया गया ।

सन1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ‘ श्री कला संगीत भारती’ के नाम से संगीत महाविद्यालय की स्थापना हुई और पं० जी ने उसका अध्यक्ष पद ग्रहण किया। उन्होंने वहाँ अनेक शिष्यों को तैयार किया।

•एक बार उन्हें गोंडल के महाराज के यहां गायन के लिए आमंत्रित किया। कलाकारों का आसन श्रोताओं के आसन से नींचे था। यह बात पं० जी को बहुत बुरी लगी और उन्हें यह कहना पडा कि गाना समाप्त होने के बाद उन्हें जमीन पर बैठने में कोई आपत्ति नहीं होगी, किन्तु कला के प्रदर्शन के समय कला और कलाकार का अपमान  मै नहीं सह सकता। आखिर महाराज को तुरन्त उच्च आसन की व्यवस्था करनी पड़ी ।

•पंडित जी की गायकी ग्वालियर घराने से संबंध रखती थी। ख्याल गायकी इस परम्परा की विशेषता है। पं० जी ख्याल गायक होते हुए भी ध्रुपद और ठुमरी का प्रदर्शन सफलतापूर्वक कर सकते थे। ठुमरी में श्रृंगारिकता होने के कारण ठुमरी के ढंग पर ही भजन गाने की नई शैली को पं० जी ने अपनाया।

  • जोगी मत जा
  • मैया मोरी मै नहीं माखन खायो
  • रे दिन कैसे कटिहै

आदि भजनों के रेकार्ड है।

•आलापचारी का ढंग उन्होंने हददु, हस्सु खाँ के शिष्य औलिया रहमत से प्राप्त किया। वे कभी कभी पं० जी के यहाँ आकर रहते थे। पंडित जी की आलापचारी में रस और भाव की पूर्ण अभिव्यक्ति होती थी। बोलतानो में गीतों के शब्दों के साथ विभिन्न प्रकार की लय और स्वर प्रयोग कानों को बडा भला मालूम पडता था। पंडित जी के आलाप, बहलावा, तान, बोलतान, सरगम आदि में पूरा समन्वय दिखाई पडतां था।

अन्य सूचना –

• मृत्यु तिथि – 29 दिसम्बर 1967

•स्थान – बॉम्बे, महाराष्ट्र, भारत

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कुछ सवाल जबाव –

ओमकार नाथ ठाकुर का जन्म स्थान और जन्म तिथि क्या है ?

स्थान – जहाज, बड़ौदा, भारत
जन्म तिथि – 24 जून 1897

ओमकार नाथ ठाकुर ने संगीत की शिक्षा कहाँ से ली और उनके गुरु का क्या नाम था ?

ओमकार नाथ ठाकुर ने संगीत की शिक्षा पं० विष्णु दिगम्बर जी के पास बम्बई में १३ वर्ष रह कर की थी

पंडित ओमकार नाथ ठाकुर को कौन कौन से अवार्ड से पुरुस्कृत किया गया ?

सन 1930 में राजकीय संस्कृति महाविद्यालय कोलकाता द्वारा संगीत मार्तंड
सन 1933 में विशुद्ध संस्कृत महाविद्यालय, काशी द्वारा संगीत सम्राट
सन 1955 में गणतन्त्र के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा पदमश्री
की उपाधि से सम्मानित किया गया ।

ओमकार नाथ ठाकुर के माता पिता का क्या नाम है ?

माता – झवरेवा
पिता – पं० गौरीशंकर ठाकुर

ओमकार नाथ ठाकुर की मृत्यु कब हुई ?

• मृत्यु तिथि – 29 दिसम्बर 1967
•स्थान – बॉम्बे, महाराष्ट्र, भारत

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